भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था पंचांग के अनुसार इसीलिए हर साल इस दिन जन्माष्टमी मनाई जाती है धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि को मथुरा में हुआ था इसलिए इस दिन भक्त भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्ति के लिए उपवास रखकर इनकी पूजा-अर्चना करते हैं।
Date | तारीख | 26 अगस्त, 2024 | |
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Day | दिन | Monday | सोमवार | |
जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त | 26 अगस्त 2024, 12:00 से 12:45 तक | 27 अगस्त 2024, 05:56 के बाद |
श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के उपलक्ष में और पृथ्वी पर कंस के अत्याचारों से मुक्ति प्राप्ति के लिए हम इस दिन को एक पर्व के रूप में मनाते हैं भाद्रपद की अष्टमी तिथि के दिन भगवान श्री कृष्ण ने देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म लिया था मथुरा की नगरी का जो राजा था वह बड़ा ही जालिम और अत्याचारी था उसके अत्याचार दिन पर दिन बढ़ते जा रहे थे उसके राज्य में प्रत्येक नागरिक उसके अत्याचारों से तंग आ चुका था 1 दिन आकाशवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी का आठवां पुत्र ही अपने मामा कंस का वध करेगा यह सुनकर राजा कम काफी क्रोधित हुआ तथा उसने क्रोध में आकर अपनी बहन को और उसके पति वासुदेव को बंदी बनाकर कालकोठरी में डाल दिया/ और अपने सैनिकों को उनके ऊपर नजर रखने का आदेश दिया उसने सैनिकों से कहा कि जब भी देवकी किसी बच्चे को जन्म दे तो मुझे तुरंत सूचना दी जाए इसके बाद जब भी देवकी के संतान होती वह उसको मार डालता ऐसा करते-करते उसने देवकी के 7 पुत्रों को मार दिया. किंतु जब देवकी ने आठवें पुत्र यानी श्रीकृष्ण को जन्म दिया तो भगवान विष्णु ने वासुदेव को आशीर्वाद दिया कि श्री कृष्ण को गोकुल में यशोदा माता और नंद बाबा के घर पहुंचा दिया जाए ताकि वह अपने मामा कंस से सुरक्षित रह सके।
इसके बाद वासुदेव ने रात्रि के समय जब सभी सैनिक सो रहे थे तभी वह श्री कृष्ण को गोकुल छोड़ने चल दिए जब रात्रि के वक्त वासुदेव कान्हा जी को टोकरी में रखकर ले जा रहे थे और यमुना नदी पार कर रहे थे तो यमुना का वहाब बहुत तेज हो गया था जिससे वासुदेव को बहुत परेशानी होने लगी तब उन्होंने गंगा मैया से कहा जय गंगा मैया अपने पानी का बहाव कुछ कम कीजिए ताकि मैं सुरक्षित गोकुल पहुंच सकूं ऐसा सुनकर कान्हा जी ने गंगा जी को अपने पैर से टच किया और टच करते हैं गंगा जी के पानी का बहाव कम हो गया जब वासुदेव गोकुल पहुंचे तो उन्होंने कृष्ण जी को वहां छोड़कर माया रूपी कन्या को साथ लेकर आ गए वासुदेव के मथुरा से गोकुल आने जाने तक उस कालकोठरी के सभी सैनिक भगवान विष्णु की माया से मूर्छित होकर पड़े रहे/ जब बासुदेव वापस कालकोठरी में पहुंच गए और सुबह हो गई तभी सारे सैनिक भी वासुदेव के आठवें बच्चे के रोने की आवाज से जाग गए वासुदेव कृष्ण को गोकुल छोड़कर यशोदा माता की माया रूपी पुत्री को लेकर आ गए
जब सैनिकों ने यह देखा के वासुदेव को पुत्र की जगह पुत्री हुई है तो उन्होंने इस बात की जानकारी कंस को जाकर दी तब कंस बोला यह कैसे हो सकता है पुत्री कैसे पैदा हो सकती है विधि का विधान कैसे बदल सकता है ऐसा कहकर वह स्वयं अपनी बहन के पास कारागार में गया और उस बच्ची कोदेवकी के हाथों से छीन कर मारने लगा तब देवकी बोली भैया इसे छोड़ दो यह तो पुत्री है आपका काल तो मेरा पुत्र था तो आप इसे क्यों मारना चाहते हैं कृपया करके इसे छोड़ दो किंतु कंस ने देवकी की एक न सुनी और देवकी के हाथों से कन्या को छीन कर मारने ही वाला था कि तभी वह माया रूपी कन्या उसके हाथ से छूटकर देवी का स्वरूप धारण कर लेती है और वह कहती है कि है कंस मुझे मार कर तुझे कोई लाभ नहीं मिलेगा तुझे मारने वाला तो जन्म ले चुका है और गोकुल में पहुंच चुका है यह देखकर वह क्रोधित हो गया और उसने गोकुल जाकर श्री कृष्ण को मारने का बहुत प्रयत्न किया किंतु वहहर बार असफल रहा अंत में भगवान श्री कृष्ण ने कंस का वध करके इस पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया इसी के उपलक्ष में जन्माष्टमी मनाई जाती है
शास्त्रों के अनुसार इसके कुछ नियम भी होते हैं यदि हम यह व्रत करते हैं तो हमें इन नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है/ यदि हम किसी भी व्रत को बिना नियमों के करते हैं तो हमें इसका संपूर्ण फल नहीं मिलता इसलिए यदि आप इस व्रत को करते हैं या किसी व्रत को करते हैं तो व्रत के संपूर्ण नियमों को करना अति आवश्यक है और आपकी कोई भी कामना है जिसको पूरा करने के लिए आप इस व्रत को कर रहे हैं या निष्फल भाव से भी यह व्रत कर रहे हैं और चाहते हैं कि इस व्रत का संपूर्ण फल हमें प्राप्त हो तो इसके लिए बहुत आवश्यक है कि आप इन सभी नियमों का पालन अवश्य करें जिस प्रकार से एकादशी का व्रत होता है और उसके नियम होते हैं उसी प्रकार से जन्माष्टमी व्रत के कुछ नियम होते हैं जैसे
जन्माष्टमी व्रत को करने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन किया जाता है:
हम जानेंगे इस व्रत में हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए:
भाद्रपद की अष्टमी तिथि को भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था इस दिन को सभी कृष्ण जन्म उत्सव के रूप में मनाते हैं और जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं हमारे वेदों और पुराणों में इस व्रत की महिमा के अनुसार कुछ खास बातें बताई गई हैं ऐसा माना जाता है कि इस भारतवर्ष में रहने वाला जो भी प्राणी कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है तो उसको 100 जन्मों के पापों से मुक्ति हो जाती है वहीं दूसरी ओर यदि गर्भवती महिला इस व्रत को करती है तो भविष्य पुराण में बताया गया है कि उसका गर्भ ठीक से पेट में रह सकता है और ठीक समय पर जन्म लेता है इसके अलावा इस व्रत को करने से अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है
जन्माष्टमी के दिन भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मनाया जाता है श्री कृष्ण का जन्म रात्रि 12:00 के समय हुआ था इस दिन भगवान के श्रंगार और के साथ एक चीज बहुत जरूरी है जिसके बिना भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव अधूरा माना जाता है वह चीज है खीरा याद रखें के बिना खीरे के यह पूजा अधूरी मानी जाती है इस व्रत में खीरे का बहुत महत्व है ऐसा माना जाता है कि नंदलाल श्री कृष्ण के जन्म की विधि में खीरे का होना अति आवश्यक है क्योंकि जब हम पूजा शुरू करते हैं उससे पहले एक हीरा लेकर उसको बीच में से सिक्के की मदद से चीर कर उसमें कान्हा जी को स्थापित करते हैं और रात्रि 12:00 बजे के बाद जब चारों तरफ श्री कृष्ण के जन्म का आभास होने लगता है तब हम अपनी पूजा को शुरू करते हैं और खीरे के अंदर से हम कान्हा जी को बाहर निकालते हैं जिस प्रकार से एक मां अपने बच्चे को गर्व से बाहर निकलती है उसी प्रकार हम खीर की मदद से प्रतिवर्ष इस प्रक्रिया को अपनाते हैं इसी के फलस्वरूप हम खीरे का इस्तेमाल करते हैं।
ही हांडी जन्माष्टमी के दौरान एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है जो खास रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है। इसमें एक मिट्टी की हांडी में दही और मक्खन भरा जाता है और उसे ऊंचाई पर लटका जाता है। समूह ने इसे तोड़ने का प्रयास करता है और वह सफलतापूर्वक तोड़ने पर मिट्टी के टुकड़ों को अधिकारी के नाम पर वितरित करता है। यह धार्मिक आयोजन भगवान कृष्ण के बचपन में गोपियों के घरों से मक्खन चुराने की याद दिलाता है, जिससे भगवान कृष्ण का खास महत्व है।
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन हम उनकी कई लीलाओं का वर्णन झांकी सजाकर और निकालकर करते है इस दिन हम मंदिरों में घरों में कई तरह की झांकियां सजाते हैं और मंदिरों में जाकर उनका आनंद लेते हैं इससे हम श्री कृष्ण की लीलाओं को याद करते हैं और ऐसा हम प्रतिवर्ष करते हैं
जन्माष्टमी के दिन सुबह के वक्त आप साधारण जो भी नॉर्मल पूजा करते हैं जो रोज करते हैं वह पूजा आप कर लें क्योंकि इस व्रत की पूजा रात्रि के 12:00 बजे के बाद की जाती है पूरे दिन आप उपवास रखें साईंकाल के समय मंदिरों में जाकर झांकियों के दर्शन करें इसके बाद घर आकर पूजा की तैयारी करें सबसे पहले आप एक चौकी ले उस पर पीला या लाल रंग का कपड़ा डालें उसके ऊपर लड्डू गोपाल स्थापित करें उसके पश्चात धूप दीप जलाएं और एक खीरा लें उसको छीलकर सिक्के की मदद से उसको काट ले और अंदर लड्डू गोपाल को विराजमान करें
इसके पश्चात टीवी या मंदिरों पर से भगवान श्री कृष्ण के जन्म की सूचना आपको मिले इसके बाद आप कान्हा जी को उसी प्रकार निकालें जिस प्रकार मां के गर्भ से बच्चा जन्म लेता है फिर लड्डू गोपाल को निकालकर एक थाली में रखकर गंगाजल से स्नान कराएं गंगाजल के स्नान के बाद चरणामृत से स्नान कराएं उसके बाद जल से स्नान कराकर ठाकुर जी को झूले पर विराजमान करें झूले पर बिठाकर झूला झुलाऊं और भगवान श्री कृष्ण के जन्म पर जैकारे लगाएं उसके बाद सभी घर के सदस्य आरती करके भोग लगाएं और तत्पश्चात चंद्रमा को अरग देकर आप अपनी पूजा संपन्न करें
जन्माष्टमी पर व्रत रखने का महत्व भगवान कृष्ण की प्रेम, विश्वास, और भक्ति की अद्भुतता को समझने और उन्हें नजदीक से महसूस करने में है। व्रती भक्त अपने मन को शुद्ध करते हैं और भगवान के ध्यान में लगे रहते हैं।
जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण के प्रसाद के रूप में मक्खन-मिश्री, पेड़ा, खीर, और अन्य मिठाईयां तैयार की जाती हैं जो उन्हें भक्तों को भेंट दी जाती हैं।
जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के भजन और कीर्तन महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इससे भक्त भगवान के चरित्र, लीला, और उपदेशों का स्मरण करते हैं। यह उन्हें आत्मिक शांति, शुद्धता, और भक्ति के पथ पर आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करता है।
जन्माष्टमी हिंदू चंद्र वार्षिक पंचांग के भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की आठवीं तिथि के दिन मनाया जाता है। भगवान कृष्ण के मंदिरों में विशेष पूजा, आरती, भजन, कीर्तन और संस्कृति संबंधी कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।